Why Ancient Hindu Temples Spark the Thailand-Cambodia Border Conflict

प्राचीन मंदिरों की गोद में छिपा सीमा विवाद: कंबोडिया और थाईलैंड की टकराहट की कहानी

दक्षिण-पूर्वी एशिया में स्थित कंबोडिया और थाईलैंड, न केवल सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से समृद्ध राष्ट्र हैं, बल्कि इनके बीच सदियों पुराना एक ऐसा विवाद है, जिसकी जड़ें इतिहास की धूल में दबी हुई हैं। यह विवाद सिर्फ ज़मीन का नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पहचान, धार्मिक विरासत और उपनिवेशकालीन राजनीति का भी प्रतीक है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे दो देशों के बीच प्राचीन हिंदू मंदिर विवाद और संघर्ष का कारण बन गए हैं।

पहाड़ की चोटी पर स्थित शिव मंदिर: प्रेह विहेयर

कंबोडिया की डांगरेक पहाड़ियों में 525 मीटर ऊँचाई पर स्थित है एक अत्यंत प्राचीन शिव मंदिर – प्रेह विहेयर (Preah Vihear)। लगभग 900 साल पुराना यह मंदिर खमेर साम्राज्य के काल में बना था और भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर कंबोडिया के लिए एक धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर है, लेकिन इसकी आस्था और ऐतिहासिकता थाईलैंड के लोगों के लिए भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।

यही वजह है कि यह मंदिर दोनों देशों के बीच लंबे समय से विवाद का केंद्र बना हुआ है। भले ही विश्व भर में अंगकोर वाट (Angkor Wat) की प्रसिद्धि अधिक है, लेकिन प्रेह विहेयर अपने इतिहास और विवादों के कारण वैश्विक राजनीति में विशेष स्थान रखता है।

ता मुएन थोम: एक और शिव मंदिर विवाद के घेरे में

प्रेह विहेयर से लगभग 95 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है ता मुएन थोम मंदिर (Ta Muen Thom)। यह भी 12वीं सदी का एक शिव मंदिर है और खमेर वास्तुकला का एक अनूठा उदाहरण है। यह मंदिर थाईलैंड के सुरिन प्रांत की सीमा के पास स्थित है और इसके इर्द-गिर्द की पहाड़ी इलाका काफी घना और जंगली है।

ता मुएन थोम मंदिर का मुख्य गर्भगृह दक्षिण की ओर खुलता है, जो कि पारंपरिक खमेर मंदिरों में एक दुर्लभ विशेषता है। यहाँ एक प्राकृतिक शिवलिंग आज भी स्थापित है, जो इस स्थान को धार्मिक रूप से अत्यंत पवित्र बनाता है।

दो देशों के बीच फिर से छिड़ी जंग

जुलाई 2025 में एक बार फिर थाईलैंड और कंबोडिया के बीच तनाव बढ़ गया। सीमा पर स्थित ता मुएन थोम मंदिर के पास दो देशों की सेनाओं के बीच झड़पें हुईं, जो पिछले एक दशक की सबसे घातक मानी जा रही हैं। इस संघर्ष में 12 लोगों की मौत हो गई और दर्जनों घायल हो गए। इसके अलावा 40,000 से अधिक थाई नागरिकों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया।

थाईलैंड के मुताबिक, यह संघर्ष तब शुरू हुआ जब कंबोडिया की सेना ने थाई सैन्य क्षेत्रों के पास ड्रोन से निगरानी शुरू कर दी। थाई सैनिकों ने इसे उकसावा माना और प्रतिक्रिया में गोलीबारी शुरू हो गई। वहीं, कंबोडिया का कहना है कि थाई सेना ने उनकी संप्रभुता का उल्लंघन किया और पहले हमला किया।

इस झड़प के बाद थाईलैंड ने अपने सभी सीमा चौकियों को बंद कर दिया और सीमा क्षेत्रों में “लेवल 4” का खतरे का अलर्ट घोषित कर दिया गया।

सीमा विवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

यह विवाद केवल एक मंदिर तक सीमित नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें औपनिवेशिक युग में जाकर मिलती हैं। 1907 में फ्रांसीसी उपनिवेशवादियों द्वारा तैयार की गई एक नक्शे के अनुसार प्रेह विहेयर मंदिर कंबोडिया की सीमा में आता है। उस समय थाईलैंड, जिसे तब “सियाम” कहा जाता था, ने इस नक्शे को स्वीकार किया था।

लेकिन बाद में थाईलैंड ने तर्क दिया कि उन्होंने यह नक्शा एक गलत धारणा के आधार पर स्वीकार किया था कि सीमा प्राकृतिक जलविभाजक रेखा (watershed line) के आधार पर तय की गई है। परन्तु 1962 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने इस विवाद में फैसला कंबोडिया के पक्ष में दिया और थाईलैंड को मंदिर क्षेत्र से अपनी सेना हटाने और वहाँ से निकाले गए ऐतिहासिक कलाकृतियों को लौटाने का आदेश दिया।

2013 में एक बार फिर ICJ ने स्पष्ट किया कि न केवल मंदिर, बल्कि उसके आसपास का क्षेत्र भी कंबोडिया का हिस्सा है। यह निर्णय 2011 की झड़पों के बाद आया था।

मंदिरों की राजनीति और सामरिक स्थिति

प्रेह विहेयर और ता मुएन थोम जैसे मंदिर केवल धार्मिक स्थल नहीं हैं, बल्कि ये सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। ये मंदिर ऊँचाई पर स्थित हैं और सीमा के आसपास की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए रणनीतिक लाभ प्रदान करते हैं। यही कारण है कि दोनों देशों की सेनाएं इन क्षेत्रों पर नियंत्रण बनाए रखने की कोशिश में लगी रहती हैं।

ता मुएन थोम मंदिर का स्थान विशेष रूप से संवेदनशील है। फरवरी में एक घटना सामने आई जिसमें कंबोडियाई सैनिकों ने मंदिर परिसर में अपने राष्ट्रगान का गायन किया। इसने थाई सैनिकों को नाराज़ कर दिया और दोनों पक्षों में बहस शुरू हो गई। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और दोनों देशों के बीच तनाव और गहरा गया।

उपनिवेशवाद का विरासत: सीमा रेखाओं का भ्रम

1863 में जब फ्रांस ने कंबोडिया को अपना संरक्षित क्षेत्र बनाया, तब से लेकर 1907 तक फ्रांस और सियाम (वर्तमान थाईलैंड) के बीच कई संधियाँ हुईं। इन समझौतों के तहत फ्रांसीसी अधिकारियों ने नए नक्शे बनाए, जिनमें जलविभाजक रेखा को सीमा माना गया। लेकिन कुछ खास सांस्कृतिक स्थलों – जैसे प्रेह विहेयर – के पास इस नियम का अपवाद किया गया।

समस्या यह है कि दक्षिण-पूर्व एशिया में परंपरागत रूप से सीमा रेखाओं की अवधारणा बहुत अलग रही है। पश्चिमी ताकतों द्वारा खींची गई सीमाएं अक्सर स्थानीय संस्कृति, भूगोल और सामाजिक संबंधों को नजरअंदाज़ करती थीं।

यूनेस्को और अंतरराष्ट्रीय मान्यता

2008 में कंबोडिया ने प्रेह विहेयर मंदिर को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Site) के रूप में मान्यता दिलाने में सफलता पाई। हालांकि, इस प्रयास ने थाईलैंड में राजनीतिक भूचाल ला दिया। उस समय के थाई विदेश मंत्री नोपादोन पट्टामा को इस्तीफा देना पड़ा क्योंकि उन्होंने कंबोडिया के प्रस्ताव का समर्थन किया था।

इस घटना के बाद मंदिर क्षेत्र में एक बार फिर संघर्ष शुरू हुआ और दोनों सेनाओं के सैनिक मारे गए। यह स्पष्ट है कि जब भी प्रेह विहेयर की अंतरराष्ट्रीय मान्यता या क्षेत्रीय स्थिति पर कोई चर्चा होती है, तो यह दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बन जाती है।

वर्तमान और भविष्य

2025 की ताजा झड़पें यह दिखाती हैं कि यह विवाद केवल ऐतिहासिक नहीं, बल्कि आज भी ज्वलंत है। सीमा रेखाएं, जो कभी औपनिवेशिक अधिकारियों द्वारा बनाई गई थीं, आज भी हजारों लोगों के जीवन को प्रभावित कर रही हैं।

इन संघर्षों का समाधान केवल सैन्य कार्रवाई से संभव नहीं है। इसके लिए राजनीतिक संवाद, ऐतिहासिक साक्ष्यों की निष्पक्ष समीक्षा और आपसी सम्मान की आवश्यकता है।

प्रेह विहेयर और ता मुएन थोम जैसे प्राचीन मंदिर केवल ईंट-पत्थर की संरचनाएं नहीं हैं। ये उस सभ्यता की निशानी हैं जिसने हजारों वर्षों तक दक्षिण-पूर्व एशिया की संस्कृति को आकार दिया। पर जब ये मंदिर राजनीति, क्षेत्रीय नियंत्रण और सामरिक हितों का केंद्र बन जाते हैं, तो उनकी मूल धार्मिक और सांस्कृतिक भावना कहीं खो जाती है।

थाईलैंड और कंबोडिया को चाहिए कि वे इतिहास से सीखें, एक-दूसरे की संवेदनाओं का सम्मान करें और इस खूबसूरत विरासत को युद्ध का मैदान नहीं, बल्कि सहयोग का मंच बनाएं।

यदि आप इस विषय पर और जानना चाहते हैं, या चाहते हैं कि हम किसी विशिष्ट पहलू पर विस्तृत जानकारी दें – तो हमें ज़रूर बताएं। हम इतिहास को समझने और वर्तमान को बेहतर बनाने की दिशा में आपके साथ हैं।

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